पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१२

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जिससे गुरु के सत्संग के लिये अधिक अवसर मिले। इसी समय के लगभग नरहरिदासजी के अनुरोध से केशवदास ने बिहारी को कुछ काल तक अपने पास रखा और काव्य-रीति की शिक्षा दी। बिहारी की कविता से साहित्य-शास्त्र का जो गभीर ज्ञान प्रकट होता है, वह प्रकांड पडित गुरु की ओर सकेत करता है, और यह सकेत केशवदास ही पर ठीक बैठता है। बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर ने बहुत अन्वेषण के बाद बिहारी की एक जीवनी लिखी थी जो नागरी-प्रचारिणी पत्रिका [नवीन सदर्भ] के आठवे भाग में प्रकाशित हुई है। उसमे उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला है। रत्नाकरजी को यहाँ तक सदेह हुआ है कि हो न हो बिहारी के पिता केशवराय और केशवदास एक ही व्यक्ति थे। इसके मानने में सबसे बडी अडचन यह है कि केशवराय सखी सप्रदाय के थे और केशव- दास ने विज्ञानगीता में सखी सप्रदाय का विरोध किया है। अतएव बिहारी उनके पुत्र नहीं, शिष्य थे।

केशवदास के काव्य के पुरस्कर्ताओं मे बीरबल का भी नाम लिया जाता है। इद्रजीतसिंह के राजकाज के सबध मे दिल्ली आते-जाते केशव का उनसे परिचय हुआ होगा। कहते है, एक बार केशव बीरबल से मिलने गये तो उन्होंने कहला भेजा कि तबीयत खराब है— अजीर्ण हो गया है, इससे मिल नहीं सकते। इस पर केशव ने यह दोहा लिख भेजा—