पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१११

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( ६१ ) मदिर मातु विलोकि अकेली। ज्यौं बिन वृक्ष विराजति वेली ॥ ३७॥ [तोटक छद] तब दीरघ देखि प्रणाम कियौ । उठि के उन कठ लगाइ लियौ ॥ न पियौ जल सभ्रम भूल रहे । तब मातु सौं वैन भरत्थ कहे ॥३८॥ भरत कैकेयी का प्रश्नोत्तर Ma( 2, [विजय छद] "मातु ! कहाँ नृप ?” “तात | गये सुर- लोकहिँ,” "क्यों ?” “सुत-शोक लये।" "सुत कौन ?" "सुराम" "कहाँ है अवै ?" "बन लक्ष्मण सीय समेत गये ॥" "बन काज कहा कहि ।" "केवल मो सुख," "तोको कहा सुख यामैं भये ?" "तुमको प्रभुता" "धिक तोको! कहा, ' अपराध बिना सिगरेई हये ?" ॥३९॥ [दो०] "भर्त्ता-सुत-विद्वेषिनी, सबही कौं दुखदाइ।" पति यह कहि देखे भरत तब, कौशल्या के पाइ॥४०॥