पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/११३

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( ६३ ) दशरथ दाह [चचरी छ द] 'हाइ' 'हाइ' जहाँ तहाँ सब है रही सिगरी पुरी। धाम धामनि सुदरी प्रगटी सबै जे हुती दुरी ॥ लै गये नृपनाथ को शव लोग श्रीसरयू तटी। / राजपत्नि समेत पुत्रन विप्रलाप गढ़ी रटी ॥४॥ [सोमराजी छ द] करी अग्नि चर्चा । मिटी प्रेत चर्चा ॥ सबै राजधानी । भई दीन वानी ॥४६॥ [ कुमारललिता छ द] क्रिया भरत कीनी । वियोग रस भीनी । सजी गति नवीनी । मुकुद - पद, लीनी ॥४७॥ भरत का चित्रकूट-गमन [तोटक छौंद] { पहिरे बकला सु जटा धरिकै । निज पाँयनि पंथ चले अरिकै ॥ तरि गग गये गुह सग लिये । १० चितकूट बिलोकत छॉडि दिये ॥४८॥ [मदनमोदक छु द् .. सब सारस हस भये खग खेचर, वौरिद ज्यों बहुबारन गाजे । ' वन के नर वानर किन्नर वालक लै मृग ज्यो मृगनायक भोजे ॥ (१) विप्रलाप गढी रटी = प्रलाप का समूह रटकर, बहुत सा प्रलाप करके । पहिरे