पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

___ ( ६४ ) २ तजि सिद्ध समाधिन केसव दीरघ दौरि दरीन) मे आसन साजे । भूतल भूधर हाले अचानक आइ भरत्थ के दुदुभि बाजे ॥४९॥ . [दो०] रामचद्र लछमन सहित, सोभित सीता सग । केसृवदास सहास उठि, चढ़े धरनिधर-शृग ॥५०॥ [मोहन छ द] लक्ष्मण-देखहु भरत चमू सजि आये। (1 जानि अबल हमको उठि धाये ॥ हीसत हय, बहु वारन गाजे- जहँ तहँ दीरघ दुंदुभि बाजै ॥५१॥ [तारक छ द] गजराजनि ऊपर पाखर है। अति सुदर सीस सिरोमनि मोहै || ". मनि पूँघुर घटन के रव बाजै। " तडिता-युत मानहुँ वारिद गाजै ॥५२॥ [विजय छ द] युद्ध को आजु भरत्थ चढ़े, धुनि दुदुभि की दसहूँ 'दिसि धाई । प्रात चली चतुरंग चमू, बरनी सो न केसव कैसेहुँ जाई । यों सबके तनत्राननि मै झलकी अरुनोदय की अरुनाई । अ तर ते जनु रजन को रजपूतन की रज ऊपर आई ॥५३॥ [तोटक छौंद] उठिकै धर धारि अकास चली। बहु चचल वाजि खुरीन दली ॥