पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१२१

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अरण्य कांड राम-अत्रि-मिलन [ भरतोद्धता छ द] चित्रकूट तब रामजू तज्यो । जाइ यज्ञथल अत्रि को भज्यो । राम लक्ष्मण समेत देखियो। आपना सफल जन्म लेखियो ॥१॥ [चद्रवर्त्म छद] स्नान दान तप जाप जो करियो । सोधि सोधि पन जो उर धरियो । योग याग हम जालगि गहियो । रामचद्र सब को फल लहियो ॥२॥ [वशस्थ छ द] अनेकधा पूजन अत्रिजू कर्यो । कृपालु है श्रीरघुनाथजू धर्यो । पतिव्रता देवि महर्षि की जहाँ । सुबुद्धि सीता सुखदा गई तहाँ ॥३॥ सीता-अनसूया-मिलन [ दो०] पतिव्रतन की देवता, अनसूया सुभ गात । सीताजू अवलोकियो, जरा सखी के साथ ॥४॥ (१) धरयो = ग्रहण की, स्वीकार की।