पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१३३

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( ८३ ) चापकीय रेख खाँचि, देव-साखि दै चले । नॉघिहैं, ते भस्म होहिं, जीव जे बुरे भले ॥५६॥ सीता-हरण छिद्र ताकि छुद्रराज लकनाथ आइयो। भिच्छु जानि जानकी सो भीख को बोलाइयो । सोच पोच मोचिकै सकोच भीम बेख को। अ तरिच्छही "करी ज्यों राहु चद्ररेख को ॥५७।। / दडक छद] cार धूमपुर के निकेत मानो धूमकेतु, की, शिखा की धूमयोनि मध्य रेखा सुधाधाम की। चित्र की सी पुत्रिका की रूरे बगरूरे माहिं, सबर छोड़ाइ लई कामिनि की काम की। पाखंड की श्रद्धा की महेश बस एकादसी, लीन्ही के स्वपचराज साखा सुद्ध साम की। । केशव अदृष्ट साथ जीवजोति जैसी, तैसी लकनाथ हाथ परी छाया जाया राम की ॥८॥ in रखो। सीता-विलाप [ हरिलीला छ द] सीता-हा राम हा रमन हा रघुनाथ धीर । लकाधिनाथ बस जानहु मोहि वीर ॥ (१) चापकीय = धनुष से बनाई हुई ।