पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१३७

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( ८७ ) शशि के अवलोकन दूरि किये। जिनके मुख की छबि देखि जिये । कृत' चित्त चकोर कछूक धरौ। १ सिय, देहु बताय सहाय करौ ॥ ७६ ॥ [सवैया ] . कहि केशव याचक के अरि चपक शोक अशोक लिये हरि के। लखि केतक केतकि जाति गुलाब ते तीक्षण जानि तजे डरिकै ॥ सुनि साधु तुम्हें हम बूझन आये रहे मन मौन कहा धरिकै । सिय का कछु सोधु कहौ करुणामय सो करुणा करुणा करिकै॥७॥ [नाराच छद] हिमाशु सूर सो लगै सो बात बज्र सो बहै। दिशा लगे कृशानु ज्यों विलेप अग को दहै ॥ बिशेषि कालराति सो कराल राति मानिए । वियोग सीय को न काल लोकहार जानिए ॥ ७८ ॥ राम-शबरी-मिलन [पद्धटिका छद] यहि भाँति विलोके सकल ठौर । गये शबरी पै दोउ देव-मौर ॥ लियो पादोदक तेहि पद पखारि । पुनि अादिक दीन्हे सुधारि ॥ ७९ ॥ (१) कृत = उपकार । (२) करुणा = करना नाम का पेड़ ।