पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१३६

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( ८६ ) वह छाडि के देह चल्यो जबहीं। यह ब्योम मे बात कह्यो तबहीं ।।६९।। पीछे मघवा मोहिं शाप दयी। गधर्व ते राक्षस देह भयी ॥ फिरि कै मघवा सह युद्ध भयो। उन क्रोध के शीश मे बज्र हयो ॥७०।। [ दो०] गयो शीश गडि पेट मै, पर्यो धरणि पर आय । कछु करुणा जिय मों भई, दीन्ही बाहु बढाय ॥७२॥ बाहु दयी द्वै कोस की, "आवै तेहि गहि खाउ । राम रूप सीता-हरण, उधरहु गहन उपाउ" ॥७२।। सुरसरि ते आगे चले, मिलिहैं कपि सुग्रीव । देहै सीता की खबरि, बाडै सुख अति जीव ॥७३॥ विरहजन्य प्रलाप , [तोटक छ द] सरिता एक केशव सोभ रई।

  • अवलोकि तहाँ चकवा चकई ॥

उर में सिय प्रीति समाइ रही। तिन सों रघुनायक बात कही ।।७४।। अवलोकत हौं जबहीं जबहीं। दुख होत तुम्है तबहीं तवहीं ।। ' वह बैर न चित्त कळू धरिए । सिय देहु बताइ कृपा करिए ।।७।।