बनाकर दूसरे दिन तुलसीदास को दिखा दी। यह कथानक स्पष्ट ही असत्य नहीं तो अतिरजित अवश्य है। वेणीमाधवदास के अनुसार यह घटना सं० १६४० की होनी चाहिए। परतु रामचद्रिका में रचनाकाल स्पष्टतया सं० १६५८ दिया हुआ है। हो सकता है कि तुलसीदासजी के कहने से ही केशवदासजी ने रामचद्रिका की रचना की हो । एक और प्रसंग मे उनके साथ तुलसीदासजी का नाम लिया जाता है। कहते हैं कि गोसाई जी ने केशवदास का प्रेत- योनि से उद्धार किया। वेणीमाधवदास ने लिखा है कि बादशाह के निमंत्रण पर दिल्ली जाते हुए गोसाईजी ओडछे के पास से गुजरे। इसी समय किसी पेड पर से केशव की प्रेतात्मा ने 'त्राहि त्राहि' पुकारा और तुलसीदासजी ने रामचद्रिका का पाठ करवाकर उनकी मुक्ति करवा दी। कोई कहते हैं कि तुलसीदासजी शौच के लिये कुएँ से लोटे में पानी खींच रहे थे कि केशव की प्रेतात्मा ने लोटा पकड लिया और कहा कि जब तक प्रेत-दशा से हमारी मुक्ति न कर दोगे, लोटा नहीं छोडेगे। तुलसीदासजी ने केशव को इक्कीस बार सारी रामचंद्रिका दोहराने का उपदेश दिया । केशव को सारी रामचंद्रिका तो याद थी पर मगलाचरण ही याद न पड़ता था। गोसाई जी ने वह बतला दिया और केशव मुक्त हो गये । ___ केशव की मृत्यु और उनके प्रेत होने की कथा भी विचित्र है। चुने चुने गुणी जन प्रोडछे के दरबार मे एकत्र थे।
पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१४
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