जस जारथो सब जगत को भयो अजीरंन तोहि । अपजस की गोली दऊँ, तत्कालहिं सुधि होहि ।। दोहे को पढकर बीरबल उसी क्षण बाहर निकल आए। तब केशव ने बीरबल की प्रशसा मे यह छद पढा- केशवदास के भाल लिख्यो बिधि रक को अंक बनाय सँवारयो। धोय धुवै नहिं छुटो छूट. बहु तीरथ जाय कै नीर पखार थो॥ है गयो रक ते राव तबै जब वीरबली नृपनाथ निहारयो। भूलि गयो जग की रचना चतुरानन बाय रह्यो मुख चारयो । ___ कहते है, इस पर प्रसन्न होकर वीरबल ने केशवदास को छ. लाख का पुरस्कार दिया। ___जान पडता है कि गोसाई तुलसीदासजी से भी केशवदास का साक्षात्कार हुआ था। गोसाई जी वहुत प्रसिद्ध साधु और कवि थे इससे बहुत से कवि उनसे मिलने के लिये जाया करते थे। एक ऐसे ही प्रसग का वर्णन बावा वेणीमाधवदास ने अपने मूल गोसाई चरित मे किया है। घनश्याम सुकुल, घासी- राम, बलभद्र आदि कवि गोमाई जी के दर्शनों के लिये गए हुए थे, उसी समय केशव भी उनसे मिलने के लिये पहुंचे। शिष्यों ने जव उनके आने की खबर गोसाई जी के पास अ दर भेजी तो उन्होंने कहा-'प्राकृत कवि केशवदास को ले आओ।' केशव ने यह सुन लिया। उन्होंने समझा, इन्हे रामचरित- मानस रचने का वडा गर्व है, उसे दूर करना चाहिए और उलटे पॉवों वापिस आकर उन्होंने एक ही रात मे रामचद्रिका
पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१३
दिखावट