पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ९६ )

शोभा अति शक्र शरासन मै । नाना द्युति दीसति है धन मै ॥
रत्नावलि सी दिवि द्वार भनो । वर्षागम बाँधिय देव मनो.॥२९॥
[ तारक छद ]
घन घोर घने दशहूँ दिशि छाये ।
मघवा जनु सूरज पै चढ़ि आये ।।
अपराध बिना क्षिति के तन ताये ।
तिन पीडन पीड़ित है उठि धाये ॥ ३० ॥
अति गाजत बाजत दु दुभि मानौ ।
निरघात सबै पविपात बखानौ ॥
धनु है यह गौर मदाइनि' नाहीं ।
शर जाल बहै जलधार वृथा हीं ।। ३१ ।।
भट चातक दादुर मार न बोले। .
चपला चसकै न फिरै बॅग खोले ।।
धुतिवतन को विपदा बहु कीन्हीं।
धरनी कह चद्रवधू धरि दीन्ही ।। ३२ ॥
तरुनी यह अत्रि ऋषीश्वर की सी।
उर मैं हमद चंद्रकला सम दीसी ॥
वरषा न सुनै किलकै किल काली ।
सब जानत है महिमा अहिमाली ॥ ३३


(१) गोर मदाइनि = इद्रधनुप। (२) चद्रवधू = वीरबहूटी।