पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१७१

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इनके दरसै परसै पग जोई।
भव सागर के तरि पार सो होई॥१२॥
[दो०] सेतु-मूल सिव सोभिजै, केसव परम प्रकास।
सागर जगत जहाज को, करिया' केसवदास॥१३॥

रामचमू-वर्णन
[दडक]
कुतल ललित नील भ्रुकुटी धनुष नैन
कुमुद कटाच्छ बाण' सबल सदाई है।
सुग्रीव सहित तार अगदादि भूपन रु,
मध्य देस केसरी' सुगजगति भाई है।
विग्रहानुकूल सब लच्छलच्छ ऋच्छबल,
ऋच्छराजमुखी मुख केसौदास गाई है।
रामचद्र जू की चमू राज्यश्री विभीष की,
रावन की मीचु दरकूच चलि आई है॥१४॥


(१) करिया = कर्णधार। (२) ये सब राम की सेना के वानर- यूथपों के नाम हैं और श्लेष से अन्य दो पक्षों में भी इनके अर्थ लग जाते हैं, जो स्पष्ट ही है। (३) तार = एक वानर-यूथप का नाम, मोती। (४) अगद = वानर-विशेष, भुजबध। (५) मध्य देस केसरी = केसरी नामक यूथप सेना के मध्य में है, (श्री और मृत्यु की) कमर सिंह के समान है। (६) विग्रहानुकूल = अनुकूल (सुडौल) अग अथवा युद्ध के इच्छुक, युद्ध में भी अनुकूल (श्री), विर ग्रहों के अनु- कूल (मृत्यु)। (७) ऋच्छराजमुखी = वह सेना जिसका मुखिया जामवत है, चद्रमुखी, भयानक।