पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१९४

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राम-संदेश
[विजय छद]
भूमि दयी भुवदेवन को भृगुन दन भूपन सौं बर' लैकै।
वामन स्वर्ग दियो मघवै सो बली बलि बाँधि पताल पठै कै।
संधि की बातन को प्रतिउत्तर आपुनही कहिए हित कैकै।
दीन्हीं है लक विभीषन को, अब देहि कहा तुमकां यह दैकै॥११९॥
मदोदरी--[मालिनी छद]
तब सब कहि हारे राम को दूत आयो।
अब समुझि परी जो पुत्र-भैया जुझायो॥
दसमुख सुख जीजै राम सो हौ लरौं यौं।
हरि हर सब हारे देवि दुर्गा लरी ज्यौं॥१२०॥
रावण--छल करि पठयो तो पावतो जो कुठारै।
रघुपति बपुरा को ? धावतो सिंधु पारे।
हति सुरपति भर्ता, विष्णु मायाविलासी।
सुनहि सुमुखि तोको ल्यावतो लच्छिदासी॥१२१॥
रावण-यज्ञ-विध्वंस
[चामर छद]
प्रौढ़रूढिकोश' मूढ़ गूढ गेह मे गयो।
शुक्रमत्र सोधि सोधि होम को जहीं भयो॥


(१) बर = बलपूर्वक। (२) प्रौढ़रूढिकोश = पक्की ढिठाई का समूह; अति ढीठ।