पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२०६

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सिंहन की सटा ऐचैं, कलभ करनि करि,
सिंहन कौ आसन गयद को रदन है॥
फनी के फनन पर नाचत मुदित मोर,
क्रोध न विरोध जहाँ मद न मदन है।
बानर फिरत डोरे डोरे अध तापसनि,
सिव को समाज कैधौं ऋषि को सदन है॥१६८

[भुजंगप्रयात छद]

गहे केसपासै प्रियासी बखानौं।
कँपै साप के त्रास तैं गात मानौ॥
मनौ चद्रमा चद्रिका चारु साजैं।
जरा सो मिले यौं भरद्वाज राजै॥१६९॥
[दो०] भस्मत्रिपुंडक सोभिजै, बरनत बुद्धि उदार।
मनौ त्रिस्रोतासात द्युति, वदत लगी लिलार॥१७०॥
फटिकमाल सुभ सोभिजै, उर ऋषिराज उदार।
असल सकल श्रुतिवरनमय, मनौ गिरा को हार॥१७१॥

[पद्धटिका छंद]

सीता समेत शेषावतार। दंडवत किये ऋषि के अपार॥
नरवेष विभीषण जामवत। सुग्रीव बालिसुत हनूमंत॥१७२॥
ऋषिराज करी पूजा अपार। पुनि कुशल प्रश्न पॅूछी उदार॥
शत्रुघ्न भरत कुसली निकेत। सब मित्र मत्रि मातन समेत॥१७३॥


( १ ) सटा = गर्दन के बाल, अयाल। (२) डोरे डोरे = डोरिआए डारिआए, साथ लिए हुए।