पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२२

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एक ही छंद हो, केवल सार्गातवाले एक पद्य में छंद का परिवर्तन हो। प्रत्येक सर्ग की कथा प्रायः अपने मे पूर्ण होती है। कथा ही की ओर ध्यान रहने के लिये यह बात आवश्यक है कि पाठक को बदलते हुए छदों की लय से अपनी मानसिक स्थिति का समन्वय करने की बार-बार आवश्यकता न पडती रहे। अन्यथा कथा के सूत्र को छोड़कर ध्यान छद की लय की ओर चला जाता है और कुतूहल का भाव, जो किसी भी कथानक मे रुचि उत्पन्न करता है, शिथिल पड़ जाता है। महाकाव्य मे इसी बात को बचाने के लिये यह नियम बनाया गया है। कथानक को प्रवाह देने के लिये यह आवश्यक है कि कुछ दूर तक एक ही छद चलता रहे, केवल कथानक के एक पूर्णांश की समाप्ति की सूचना देने के लिये सर्गांत मे छंद बदले। परंतु रामचद्रिका में इसी बात की अवहेलना की गई है। पद पद पर छंद बदलता रहता है। प्रबंध-काव्य होने के बदले वह अधिकतर छंदों का अजायबघर हो गया है। आदि मे एकाक्षरी से लेकर कई अक्षरों तक के छंद एक ही स्थान पर मिलते हैं। इतना ही नही उसमे प्रायः साहित्य-शास्त्र के सब लक्षणों के उदाहरण जान-बूझकर प्रस्तुत किए मालूम होते है। दोषों के भी उदाहरण नहीं छोड़े गए हैं। मालूम होता है, जैसे फुटकर पद्यों का तरतीबवार सग्रह कर दिया गया हो, विषय की सभावनाओं को देखते हुए जिन्हे उन्होंने वह रूप दे डाला, जो हमें आज देखने को मिलता है।