यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१८९)
रामाश्वमेध
विश्वामित्र वसिष्ठ सौं, एक समय रघुनाथ।
आरभो केशव करन, अश्वमेध की गाथ॥१७५॥
[चामर छ द]
राम--मैथिली समेति तौ अनेक दान मै दियो॥
राजसूय आदि दै अनेक जज्ञ मैं कियो॥
सीय-त्याग पाप ते हिये सों हौं महा डरौ॥
और एक अश्वमेध जानकी विना करौ॥१७६॥
कश्यप--[दो०] धर्म कर्म कछु कीजई, सफल तरुणि के साथ।
ता बिन जो कछु कीजई, निष्फल सोई नाथ॥१७७॥
[तोटक छ द]
करिए युतभूषण रूपरयी।
मिथिलेशसुता इक स्वर्णमयी॥
ऋषिराज सबै ऋषि बोलि लिये।
शुचि सों सब यज्ञ बिधान किये॥१७८॥
हयशालन ते हय छोरि लियो।
शशिवर्ण सो केशव शोभ रयो॥
श्रुति श्यामल एक विराजतु है।
अलि स्यौं सरसीरुह लाजतु है॥१७९॥
[रूपमाला छद]
पूजि रोचन स्वच्छ अच्छत पट्ट बाँधिय भाल।
भूपि भूषन शत्रुदूषण छोडियौ तेहि काल॥