पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२४३

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(१९३)

[निशिपालिका छद]
रोष करि बाण बहु भाँति लव छंडियो।
एक ध्वज सूत युग तीनि रथ खंडियो॥
शस्त्र दशरत्थ-सुत अस्त्र कर जो धरै।
ताहि सियपुत्र तिल तूल सम खडरै॥१९३॥
[तारक छद]
रिपुहा तब बाण वहै कर लीन्हो।
लवणासुर को रघुनंदन दीन्हो॥
लव के उर में उरझ्यो वह पत्री'।
मुरझाइ गिर्यो धरणी महँ छत्री॥१९४॥
[मोटनक छद]
मोहे लव भूमि परे जबहीं।
जय-दुंदुभि बाजि उठे तबहीं॥
भुव ते रथ ऊपर आनि धरे।
शत्रुघ्न सो यौ करुणानि भरे॥१९५॥
घोडो तबही तिन छोरि लयो।
शत्रुघ्नहिं आनँद चित्त भयो॥
लैकै लव को ते चले जबहीं।
सीता पहँ बाल गये तबहीं॥१९६॥


(१) पत्री = बाण।