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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२४७

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राम--[ चतुष्पदी छंद ]
गुणगण प्रतिपालक रिपुकुलघालक बालक ते रनरंता ।
दशरथ नृप को सुत, मेरो सोदर, लवणासुर को हता ॥
कोऊ द्व' मुनिसुत काकपक्षयुत, सुनियत हैं, जिन मारे ॥
यहि जगतजाल के करम काल के कुटिल भयानक भारे ॥२१३॥
[ मरहट्टा छंद ]
लक्ष्मण शुभलक्षण बुद्धि विचक्षण लेहु बाजि को शोधु ।
मुनि शिशु जनि मारेहु बधु उधारेहु क्रोध न करेहु प्रबोधु ॥
बहु सहित दक्षिणा दै प्रदक्षिणा चल्यो परम रणधीर ।
देख्यो मुनिबालक सोदर उपज्यो करुणा अद्भुत वीर ॥२१४॥
[ दोधक छ द ]
लक्ष्मण को दल दीरघ देख्यो ।
कालहु ते अति भीम विशेख्यो ॥
कुश--दो मैं कहौ सो कहा लव कीजै ।
आयुध लैहो कि घोटक दीजै ॥२१५॥
लक्ष्मण से लव-कुश का युद्ध
लव--बूझत हौ तौ यह प्रभु कीजै ।
मो असु दै वरु अश्व न दाजै ॥
लक्ष्मण को दल सिंधु निहारो ।
ताकहँ बाण अगस्त्य तिहारो ॥२१६॥