पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२४६

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[ स्वागता छद ]

भग्गुल--वालमीकि थल वाजि गयो जू।
विप्र बालकन घेरि लयो जू॥
एक बाँचि पट घोटक बाँध्यो।
दौरि दीह धनुमायक साँध्यो ॥२०७॥
भाँति भाँति सब सैन सँहारयो।
आपु हाथ जनु ईश सँवारयो॥
अस्त्र शस्त्र तब बधु जो धारयो।
खंड खड करि ताकहँ डारयो ॥२०८॥
रोष वेष वह बाण लयो जू।
इद्रजीत लगि आपु दयो जू॥
काल रूप उर माँह हयो जू।
वीर मूर्छि तब भूमि भयो जू ॥२०९॥

[ तोमर छंद ]

वह वीर लै अरु बाजि। जबही चल्यो दल साजि ॥
तब और बालक आनि। मग रोकियौ तजि कानि ॥२१०॥
तेहि मारियो तुव बंधु। तब ह्वै गयो सब अंधु ।
वह बाजि लै अरु वीर। रण मैं रह्यो रुपि धीर ॥२११॥
[ दो०] बुधि बल विक्रम रूप गुण, शील तुम्हारे राम ।
काकपक्षधर बाल द्वै, जीते सब सग्राम ॥२१२॥