( १६ ) क्रातदर्शिता प्राप्त करने के लिये साहित्य-शास्त्र का पठन- पाठन ही अलम् नहीं है। उसके लिये सूक्ष्म निरीक्षण चाहिए । सवेदनशील हृदय को लेकर आँखे खोले रहना अपेक्षित है। अनुभूति-सचय के लिये विशेष उपार्जन-यात्रा की आवश्यकता नहीं। सामान्य व्यवहार में पद पद पर उनका साक्षात्कार होता रहता है। आवश्यकता है उन्हे स्वायत्त करने के लिये सवेदनशील हृदय की, जिस पर उनका अक्स अपने आप पड जाय। कवि के निर्माण में विधाता का हाथ यहीं पर आता है। कवि जन्म से होता है , बनाने से नहीं-यह कवि के हृदय की सवेदनशीलता को ही लक्ष्य करके कहा गया है। परतु विधाता अथवा प्रकृति को पक्षपाती न समझना चाहिए। वह प्रत्येक मनुष्य को सवेदनशील हृदय दकर जगत् में भेजता या भेजती है। बालक का घास पत्तों, मिट्टी के ढेलों से सुख प्राप्त कर सकना इस बात का साक्षी है। जिस प्रकार अभ्यास से कविता के बहिरग के निर्माण में कुशलता प्राप्त हो सकती है, उसी प्रकार अनभ्यास से स वेदनशीलता नष्ट होती जाती है। लार्ड मेकॉले की यह उक्ति कि ज्यों ज्यों सभ्यता का विकास होता है त्यों त्यों कविता का ह्रास होता जाता है, सभ्यता के विकास के साथ जीवन के अप्राकृतिक आवरणों की वृद्धि के कारण सवेदना- शक्ति के अनभ्यास की अधिक सभावनाओं की ओर ही सकेत करती है।
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