पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२६

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( २० ) रामचद्रिका के समीक्षण से पता चलता है कि साहित्य- शास्त्र के आचार्य होने के कारण केशव ने काव्य के बहिरग की ओर इतना ध्यान दिया कि उनके हृदय की सवेदनशीलता उपेक्षित होकर सो गई। यही कारण है कि सूक्ष्म बुद्धि होने पर भी उनका निरीक्षण उतना सूक्ष्म और पर्याप्त नहीं है जितना किसी कवि मे होना चाहिए । ___ मनुष्यजीवन तो उनकी आँखों मे कुछ पड भी गया था पर प्रकृति मे अतर्हित जीवन का स्पदन वे नहीं देख पाए । सनुष्य-जीवन की भिन्न भिन्न दशाओं में जहाँ उनकी दृष्टि गई है वहाँ उनकी भावुकता भी जागरित हो गई है। कुछ उदाहरण यहाँ दिए जाते हैं। ___ उसके सुख को देखकर जलनेवाली सौत को और जलाने की कौशल्या की यह इच्छा कितनी स्वाभाविक है- . रहौ चुप है सुत क्यों बन जाहु, न देखि सके तिनके उर दाहु; और जो नासमझी और चारित्रिक निर्बलता के कारण अपने ही प्रिय का अपकारी बन जाय ऐसे आदरणीय के प्रति भी यह उपेक्षा और झुंझलाहट भी- लगी अब बाप तुम्हारेहिं बाइ। किसी अपने ही मुँह से अपनी तारीफ करनेवाले की गर्वोक्तियाँ सुनकर दिल मे खुद-बखुद तानेजनी की जो उमंग उठती है उसे परशुराम के प्रति भरत के इस कथन मे देखिए-