पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२५८

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अस्त्र, शस्त्र सबै दये अरु वेद भेद पढाइ।
बाप को नहि नाम जानत, आजु लौं रघुराइ ॥२६८॥
[ दोधक छंद ]
जानकि के मुख अक्षर आने ।
राम तहीं अपने सुत जाने ॥
विक्रम साहस सील विचारे ।
युद्ध कथा कहि आयुघ डार ॥२६९॥
राम--अंगद जीति इन्है गहि ल्यावो ।
कै अपने बल मारि भगावो ॥
वेंग बुझावहु चित्त चिता कों ।
आजु तिलोदक देहु पिता कों ॥२७०॥
अगद तौ अँग अगनि फूले ।
पौन के पुत्र कह्यो अति भूले ॥
जाइ जुरे लव सौ तरु लै कै ।
बात कही सतखडन कै कै ॥२७१॥
अंगद-लव-संग्राम
लव--अंगद जो तुम पै बल होतो ।
तौ वह सूरज को सुत को तो ?
देखत ही जननी जो तिहारी ।
वा सँग सोवति ज्यौ बर-नारी ?२७२॥
जा दिन तै युवराज कहाये ।
विक्रम बुद्धि विवेक बहाये ॥