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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२६०

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छाँडि दियौ गिरि भूमि पर्यौई।
विह्वल ह्वै अति मानौ मर्यौई॥२७८॥
[ विजय छद ]
भैरव से भट भूरि भिरे बल खेत खडे करतार करे कै।
भारे भिरे रणभूघर भूप न टारे टरे इभ कोटि अरे कै॥
रोष सों खड्ग हने कुश केशव भूमि गिरे न टरेहु गरे कै।
राम विलोकि कहैं रस अद्भुत खाये मरे नग नाग मरे के॥२७९॥
[ दोधक छद ]
वानर ऋच्छ जिते निशिचारी। सेन सबै इक बान सँहारी।
बान बिधे सब ही जब जोये। स्यदन मै रघुन दन सोये॥२८०॥
[ गीतिका छद ]
रन जोइ कै सब सीस भूषन संग्रहे जे भले भले।
हनुमत को अरु जामवतहिं वाजि स्यौं ग्रसि लै चले॥
रन जीति कै लव साथ लै करि मातु के कुस पाँ परे।
सिर सूंघि कठ लगाय आनन चूमि गोद दुवौ धरे ॥२८१।।

सीता--शोक
[ रूपमाला छद ]
चीन्हि देवर को विभूषन देखि कै हनुमत।
पुत्र हौं विधवा करी, तुम कर्म कीन दुरत॥
बाप कौ रन मारियो अरु पितृभ्रातृ सँहारि।
आनियौ हनुमंत बाँधि न, आनियो मोहिं गारि॥२८२॥