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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२६२

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(२१२)

तू तौ पतिदेवन की गुरु, बेटी।
तेरी जग मृत्यु कहावति चेटी॥२८८॥
[ तोटक छद ]
सिगरे रनमडल मॉझ गये।
अवलोकतहीं अति भीत भये॥
दुहुँ बालन को अति अद्भुत विक्रम।
अवलोकि भयो मुनि के मन सभ्रम॥२८९॥
सीता-राम-सम्मिलन
[ दडक छद ]
मोनित सलिल नर वानर सलिलचर,
गिरि बालिसुत विष बिभीषन डारे हैं।
चमर पताका गुडी बडवा अनल सम,
रोगरिपु जामवंत केशव विचारे है॥
वाजि सुरवाजि सुरगज से अनेक गज,
भरत सबधु इदु अमृत निहारे हैं।
सोहत सहित शेष रामचद्र कुश लव,
जीति कै समरसिंधु साँचे हू सुधारे हैं॥२९०॥
सीता-[दो०] मनसा बाचा कर्मणा,जो मेरे मन राम।
तौ सब सेना जी उठै,होहि घरी न विराम॥२९१॥
[दोधक छद]
जीय उठी सब सेन सभागी।
केसव सोवत तै जनु जागी॥