पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२७

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( २१ ) हैहय मारे नृपति सँहारे सो यश लै किन युग युग जीजै। दूसरे ही प्रकार के प्रसग मे यह भाव मैथ्यू आनल्ड ने इस प्रकार प्रकाशित किया है-- टेक हीड लेस्ट मेन शुड से लाइक सम ओल्ड माइजर, रुम्तम होर्ड स हिज फ्रेम ऐड शंस टु पेरिल इट विद यंगर मेन । प्रभाव प्रकारातर से दोनों का एक ही पड़ता है। भड़काने का यह अच्छा तरीका है। ग्रसी बुद्धि सी चित्त चिंतानि मानो। किधी जीभ दंतावली में बखानो ।।-- में राक्षसियों के बीच घिरी हुई सीता की परवशता का यथा-तथ्य चित्र खिंच जाता है। 'दाँतों मे जीभ' तो परवशता का द्योतक होकर मुहाविरे के रूप मे लोगों की जबान पर पहले ही से चढ़ा था, पर चिंताग्रसित बुद्धि भी उसे प्रकट करने में कम समर्थ नहीं है। ___ भय और लज्जा से मनुष्य किस प्रकार सिकुड जाता है, वह रावण के सामने सीता की उस दशा में दिखाया गया है जिसमे उन्होंने । सबै अग लै अग ही मे दुरायो। मनुष्य पर जब घोर आपत्ति आती है तब वह पागल सा हो जाता है। वियोग भी ऐसी ही आपत्ति है, जिसमें वियुक्त अपनी सुध-बुध भूल जाता है, अपनी परिस्थिति को नहीं देखता, ककड-पत्थर से भी प्रश्न करके उत्तर को प्रतीक्षा करता