पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/३२

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( २६ ) का वास्तविक भाव मालूम हो गया। इस समय भरत ने जो भ्रातृभाव और आत्म-त्याग प्रदर्शित किया उसने उन्हे राम का अत्यत प्रिय बना दिया। इस प्रेम में कुछ कृतज्ञता का भाव था। भरत की ओर इस झुकाव को राम ने कभी छिपाया नहीं। हनुमान भी यह बात जानता था। इसी से राम का परिचय देते हुए उसने सीता से कहा था- __अरु यदपि अनुज तीन्यो समान । __ पै तदपि भरत भावत निदान ।। इनके भरत में भी लक्ष्मण के समान कुछ तीक्ष्णता है। शील का अनुरोध भी अपने पिता के सबध मे उनको यह कहने से न रोक सका- मद्यपान-रत स्त्री-जित होई । सन्निपातयुत बातुल जोई ॥ देखि देखि तिनको सब भागै । तासु बात हति पाप न लागै ।। ___ राम के सामने जो धर्म-सकट है उसका ध्यान न रखकर वे भागीरथी-तट पर जाकर आत्म-हत्या करने का सकल्प कर लेते हैं। परतु जब गगा ने अाकाशवाणी की कि तुम्हारी माता का कोई दोष नहीं है, यह इन्हीं की माया है, रावण को मारने के लिये ये वनवासी हुए हैं तब कहीं आत्महत्या से विरत हुए । इनका अंगद भी विशिष्टता-युक्त है। उसने राम की वश्यता हृदय से नहीं की है। राम को वह वैरी ही समझता है। उनका कार्य वह डर के मारे करता है। जब सीता का पता नहीं चलता तो वह सोचता है-