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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/३३

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जो घर जैए सकुच अन ता । मोहिं न छोड़े जनक-निहंता ।। ____पर जब उसने एक बार कार्य करना स्वीकार कर लिया तब वह विश्वासघात नहीं कर सकता। उसने राम के हित की हानि अपने हाथ से कभी न होने दी। रावण ने उसे बहुत लोभ दिया, पर राम का पक्ष छोडने का भाव भी उसके मन में न उठा। पर राम के राज्याभिषेक के अवसर पर अयोध्या में उसके हृदय में पितृ-वैरोद्धार की भावना जागरित होती है और वह राम और उनके सब सहायकों को युद्ध करने के लिये ललकारता है। मेरे कुल मे कोई तुमसे लडेगा तब तुम्हारा दिल मेरी ओर से साफ होगा, यह कहकर राम उसका समाधान करते हैं। अत में लव से अगद की लडाई होती है, और जब उसके प्राण सकट में पड़ जाते हैं तब उसके हृदय मे राम के प्रति पूर्ण भक्ति का उदय होता है- हा रघुनायक | हौं जन तेरो । रक्षहु गर्व गयो सब मेरो ॥, रामचद्रिका मे केशव ने राम-कथा मे विशेष परिवतेन नहीं किया है। जहाँ तक वाल्मीकि-रामायण में कथा मिलती है, वहाँ तक उन्होंने उसी का अनुसरण किया है। तुलसीदास परशुराम को धनुष टूटने पर यज्ञमडप ही में ले आए हैं; पर केशव ने वाल्मीकि के अनुसार परशुराम का आगमन बारात के प्रस्थान के बाद बतलाया है। उन्होंने रामाभिषेक ही पर कथा को समाप्त नहीं कर दिया है, बल्कि लव-कुश की कथा भी दी है। अश्वमेध यज्ञ और लव-कुश-कथा बहुत सुदर है।