( ३२ ) देखे भावे मुख, अनदेखे कमल-चंद । अगर केशव यह कहते कि सीताजी कमल और चद्रमा से सौंदर्य में बढ़ जाती है तो कोई बात न थी, ये चीजे तब भी सुदर रहतीं। पर यह कहकर, कि ये तभी तक सुदर लगते है जब तक देखे नहीं जाते, उन्होंने इनकी सुदरता को सर्वथा अस्वीकार कर दिया है। केशव की आँखों के साथ हृदय का संयोग न था, इसके अतिरिक्त इस पर और कोई कह ही क्या सकता है ? ____कल्पना की बे-पर की उडाने अलबत केशव ने खूब मारी हैं। जहाँ किसी की कल्पना नहीं पहुँच सकती वहाँ उनकी कल्पना पहुँच जाती है। उनकी उत्कट अलकार कल्पना के नमूने रामचंद्रिका के किसी भी पन्ने को उलटकर देखने से मिल सकते हैं। यहाँ एक दो ही उदाहरण काफी होंगे। ____लंका में आग लगी है- कंचन को पघल्यो पुर पूर पयोनिधि मे पसरयो सो सुखी है। गंग हजार मुखी गुनि 'केसौ' गिरा मिली मानो अपार मुखी है। (उत्प्रेक्षा) अग्नि के बीच बैठी हुई सीता को देखकर उद्दीप्त हुई केशव की कल्पना अत्यंत चमत्कारक है- महादेव के नेत्र की पुत्रिका सी । कि सग्राम की भूमि मे चंडिका सी। मनो रत्न सिंहासनस्था सची है। किधों रागिनी राग पूरे रची है। ( सदेह+ उत्प्रेक्षा)
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