पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/४६

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त्यों आजहु देखो'। 'कष्ट उठाना' मुहावरा है पर 'दुःख देखना' अवसर के अनुसार शिष्ट उक्ति नहीं मालूम पडती। परशुराम- क्रोध के लिये अमगल-लक्षण उपस्थित करना ही अभीष्ट हो तो बात दूसरी है। 'दुःख देखि कै देखिहाँ तव मुख आनँ दकद' में अलबत 'दुःख देखना' अनुचित नहीं लगता है क्योंकि वह वास्तविक विद्यमान दुःख की ओर सकेत करता है। सस्कृत के अनुरूप होने पर भी हिंदी मे 'देवता' का स्त्रीलिंग में प्रयोग विलक्षण है। 'वेगि दै' मे 'दै' व्यर्थ मालूम पड़ता है पर इसकी पुष्टि मे बुदेलखंडीपन पेश किया जाता है। ____संक्षेप मे, अपने निरीक्षण से एकत्र की हुई सामग्री को विचारों के पुष्ट साँचे में ढालकर, उसे कल्पना का सौंदर्य देकर, तथा रागात्मिकता का उसमे जीवन उपसंहार फूंककर ही सफल कवि कविता का जीता- जागता मनोहर रूप खडा कर सकता है। जिसमें ये सब बातें न होंगी उसे यद्यपि हम कवि कहने से इनकार न कर सके तथापि सफल कवि कहने को बाध्य नहीं किए जा सकते । केशवजी मे विचारों की पुष्टता है, कल्पना की उड़ान है, पर यद्यपि संवेदनशीलताजन्य रागात्मिकता का सर्वथा अभाव नहीं है फिर भी प्रायः अभाव ही सा है। निरीक्षण भी उनका 'एकदेशीय है जो मनुष्य के जीवन-व्यवहार ही से संबंध रखता है, मनुष्य की मनोवृत्तियों पर उनका यथेष्ट अधिकार नहीं है और प्रकृति-निरीक्षण तो उनमें है ही नहीं। भाषा भी उनकी