पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/४७

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काव्योपयोगी नहीं है; माधुर्य और प्रसाद गुण से तो जैसे वे खार खाए बैठे थे। परतु उनके नाम और उनकी करामात का । ऐसा जादू है कि उन्हें महाकवि केशवदास कहे बिना जी ही नहीं मानता, यद्यपि कविता के प्रजातंत्र में 'महा' और 'लघु' के विचार के लिये स्थान नहीं है, क्योंकि कविता यदि सच्ची कविता है तो, चाहे वह एक पक्ति हो या एक महाकाव्य, समान आदर की अधिकारिणी है और तदनुसार उनके रचयिता भी; वैसे तो महाकाव्य लिखनेवाले सैकड़ों महाकवि निकल आयेंगे। परतु यदि आदत से विवश होकर इस उपाधि का साहित्य-साम्राज्य ,, मे प्रयोग आवश्यक ही हो तो उसे तुलसी और सूर के लिये सुरक्षिन रखना चाहिए। हॉ, हिंदी के नवरत्नों में ( कविरत्नों मे नहीं) केशव का स्थान वाद-विवाद की सीमा के बाहर है क्योंकि साहित्य-शास्त्र की गंभीर चर्चा के द्वारा उन्होंने हिंदी के साहित्यक्षेत्र में एक नवीन ही मार्ग खोल दिया, जिसकी ओर उनसे पहले लागों का बहुत कम ध्यान गया था। पीतांबरदत्त बड़थ्वाल