पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचंद्रिका पर उ बाल कांड गणेश-वंदना ली मनहरण छद] , Ori बालक मृणालनि ज्या तोरि डारै सव काल । कठिन कराल त्यों अकाल दीह दुख को । । विपति हरत हठि पद्मिनी के पात सम; एक ज्यो पताल पेलि पठवै कलुख को लेरा' दूरि कै कलक अंक भवशीश-शशि सम , राखत है केशोदास दास के वपुख को र - सॉकरे' की सॉकरन सनमुख होत तोरै , Amril - दशमुख मुख जोवै गजमुख मुख को ॥१॥ सरस्वती-वंदना कता बानी जगरानी की उदारता बखानी जाय , AMRAPAL ANS ऐसी मति कही धौं उदार कौन की भयी। रा (१) दीह = दीर्घ । (२) सॉकरे = सकट, सकीर्ण ( सॅकरा) समय । (३ । सॉकरन = शृ खलाओं को। (४) दशमुख = दशों दिशाएँ, अथवा ब्रह्मा-४ मुख, विष्णु-१ मुख; महेश-५ मुख ।