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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/५२

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देवता, प्रसिद्ध सिद्ध, ऋषिराज तपवृद्ध , कहि कहि हारे सब, कहि न के. लयी। भावी, भूत, वर्तमान जगत बखानत है , केशोदास केहूँ न बखानी काहू पै गयी। वणे पति चारि मुख, पूत वणे पाँच मुख , । नाती वणे षट मुख, तदपि नयी नयी ॥२॥

राम-वंदना

पूरण पुराण अरु पुरुष पुराण परि-11 .' 'पूरण बतावै, न बतावै और उक्ति को। - दरसन देत, जिन्हे दरसन समुझै न , ' "नेति नेति' कहै वेद छाँड़ि आन युक्ति को ।।। जानि यह केशोदास अनुदिन राम राम रटत रहत न डरत पुनरुक्ति को। रूप देहि अणिमाहि, गुण देहि गरिमाहि , भक्ति देहि महिमाहि, नाम देहि मुक्ति को ॥३॥

कवि-परिचय
[सुगीत छद]

सनाढ्य जाति गुनाढ्य है, जग सिद्ध शुद्ध स्वभाव । कृष्णदत्त प्रसिद्ध है, महि: मिश्र पडितराव ॥ गणेश सेो सुत पाइयो बुध काशिनाथ अगाध । अशेष शास्त्र विचारि कै जिन जानियो मत साध ॥४॥