पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/६०

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..(४.१४ (१० ) सो०] नागर- नगर अपार, महामोहतम मित्र से। ___ तृष्णालता कुठार, लोभसमुद्र अगस्त्य से ॥३५॥ दो०] विश्वामित्र पवित्र मुनि, केशव बुद्धि उदार । देखत शोभा नगर की, गए राजदरबार ॥३६॥ शोभित बैठे तेहि सभा, सात द्वीप के भूप । तहँ राजा दशरथ लसै, देवदेव अनुरूप ॥३७॥ देखि तिन्हें तब दूर ते, गुदरानो प्रतिहार | m? आये विश्वामित्रजू, जनु दूजो करतार ॥३८॥ उठि दौरे नृप सुनत ही, जाइ गहे तब पाइ। ' लै आये भीतर भवन, ज्यौं सुरगुरु सुरराई ॥३९।। ०] सभा मध्य बैताल', ताहि समय से पृढ़ि उठ्यो । । केशव बुद्धि विशाल, सुदर सूरो भूप सो ॥४०॥ / [घनाक्षरी] ज-विधि के समान है , विमानीकृत' राजहस',17.. .) विविध विबुध युत मेरु. सो अचल है। दीपति दिपति अति ) सातौं दीप दीपियतु, ।, दूसरो दिलीप सो सुदक्षिणा को बल है। (१) गुदरानो = निवेदन किया। (२) बैताल = भाट, वंदी। ) विमानीकृत = विमान बनाए हुए हैं ( अधीन रखे हुए हैं ), -विहीन किए हुए हैं। (४) राजहस = मराल पक्षी, राजाओं के अर्थात् राजा । (५) विबुध = देवता, पंडित । (६) सुदक्षिणा = दिलीप की स्त्री; अच्छी दक्षिणा ।