पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/६८

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( ( १८ ) [घनाक्षरी ] : ... पावक पवन मणिपन्नगें पतंग / पित, : जेते ज्योतिवंत जग ज्योतिषिन गाये हैं। असुर प्रसिद्ध सिद्ध तीरथ सहित सिंधु, केशव चराचर जे वेदन बताये हैं। अजर अमर अज अंगी औ अनगी सब, बरैणि सुनावै ऐसे कौने गुण पाये हैं। सीता के स्वयंवर को रूप अवलोकिबे को, भूपन को रूप धरि विश्वरूप आये हैं ॥८॥ 1 [विजय छंद] दिकपालन की, भुवपालन की, लोकपालन की,किन मातु गयी च्चै ठाढ़ भये उठि आसन ते, कहि केशव शभुशरासन को छ्वै काहू चढ़ायो न, काहू नवायो न, काहू उठायो न ऑगुरहू द्वै , स्वारथ भो न भयो परमारथ, आये ह वीर, चले वनिता ह॥८१। पदा०] सबही को समझया सबन, बल विक्रम परिमाण । सभा मध्य ताही समय आये रावण बाण ॥८२।। रावण बाण महाबली, जानत सब ससार । जो दोऊ धनु करखिहै, ताको कहा विचार ॥८३|| बाणासुर- सवैया ] केशव और ते और भयी, गति जानि न जाय कछू करतारी । सूरन के मिलिबे कहँ पाय, मिल्यो दसकठ सदा अविचारी । ।।। 2