पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/८७

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दायज वर्णन . . . [चामर छद] मत्त दतिराज राजि वाजिराज राजि कै." हेम हीरे मुक्त चीर, चारु साज साजि कै। वेस वेस वाहिनी असेस वस्तु सोधियो। दाइजो विदेहराज भॉति भाँति को दियो ।।१७६।। 'वस्त्र भौन स्या' वितान आसने विछावने । अस्त्र सस्त्र अगत्राण भाजनादि को गने।, -" दासि दास वासि, वाम रोम पाट के कियो। - दाइजो विदेहराज भॉति भॉति को दिया ॥१७७।। परशुराम संवाद [दा०] विस्वामित्र विदा भये, जनक फिरे पहुँचाइ। मिले आगिली फौज को, परसुराम अकुलाइ ॥१७॥ [चचरी छद] मतदति अमत्त हो गये देखि देखि न गजहीं। ठौर ठौर सुदेस केशव दु दुभि नहिं वजहीं ।। डारि डारि हथ्यार सूरज जीव लै लै भजहीं।।

काटि कै तनत्राण एकै नारि वेखन सज्जहीं ।।१७९||

[दो०] वामदेव ऋपि सेा कह्यो, 'परसुराम रणधीर । महादेव को धनुष यह, को तोरेउ बलवीर ?' ||१८०|| (१) स्या=सहित । (२) वासि = सुगध से सुवासित करके । (३) बास = वस। (४) दाइजो = दहेज ।