पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/८८

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( ३८ ) वामदेव-महादेव को धनुष यह, परशुराम ऋषिराज । तोरेउ 'रा' यह कहतहीं, समुझेउ रावन राज ॥१८॥ । [चद्रकला छद] परशुराम-बर बान-सिखीन असेस समुद्रहि, 1 /सोखि सखा सुख ही तरिहैं।। पुनि लकहिँ औटि कलंकित के, फिरि पंक कन कहिँ की भरिहैं।। भल मूं जि के राख सुखै' करिकै, दुख दीरघ देवन को हरिहैं।। 'सितकठ के कठन को कठुला, दसकंठ के कठन को करिहौं ।।१८२॥ [सयुता छंद] परशुराम-यह कौन को दल देखिए ? वामदेव-यह राम को प्रभु लेखिए । । परशुराम-कहि कौन राम न जानियो । .. वामदेव-शर ताडका जिन मारियो ॥१८३।। [विजय छद] परशुराम-ताड़का सँहारी तिय न विचारी ___ कौन बडाई ताहि हने ? वामदेव-मारीच हुते सँग प्रबल सकल खल अरु सुबाहु काहू न गने । (१) सुखै = सहज ही में।