पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/९०

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( ४० ) वर मान वामदेव को धनुख तोरो इन जानत है। बीस बिसे राम बेस काम है ॥१८८॥ [गीतिका छद] - भरतकुस मुद्रिका समिधै नु वा कुस औ' कमंडल को लिये। करमूल सर धनु तर्कसी भृगुलात सी दरसै हिये ।। धनु बाण तिच्छ कुठार, केसव मेखला मृगचर्म से। रघुवीर को यह देखिए रसवीर सात्त्विक धर्म सों ॥१८९॥ AL [नाराच छ द] राम-प्रचड हैहयाधिराज दडमान जानिए । अखड कीर्तिलेय भूमि देयमान मानिए ॥ अदेव देव जेय भीत रच्छमान लेखिए ।, माल अमेय तेज भर्गभक्त भार्गवेश देखिए १९०॥ रशुराम-सुनि रामचद्र कुमार । मन वचन कीर्ति उदार ॥ राम-भृगुवश के अवतस । मनवृत्ति है केहि अस ||१९१।। 4 [ मदिरा छ द] शुराम-तोरि सरासन संकर को सुभ सीय स्वयंवर मॉम बरी। ताते बढ़यो अभिमान महा मन मेरीयो नेक न सक करी॥ राम-सा अपराध परो हम से अब क्यों सुधरै तुमहूँ धौं कहौ । परशु०-बाहु दै दोउ कुठारहिं केशव आपने धाम को पथ गहौ॥१९२॥ [कुडलिया] राम-टूटै टूटनहार तरु, वायुहि दीजत दोस । त्यो अब हर के धनुख को हम पर कीजत रोस ।