पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/९९

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(४९ ) अयोध्या-आगमन [सुमुखी छ द] सब नगरी बहु सोभ रये । जहँ तहँ मगल चार ठये ।। बरनत हैं कविराज बने । तन मन बुद्धि विवेक सने ॥२२७॥ [मोटनक छ द] R om -al ऊँची बहु वर्ण पताक लसै । माना पुर दीपति सी दरसै ॥ देवीगण व्योम विमान लसै । शोभै तिनके मुख अ चल सै॥२२८॥ [तामरस छ द] - MIO घर घर घटन के रव बाजै । बिच बिच सख जु झालरि साजै ।। 0 पटहपखाउज श्रावझ' सोहैं । मिलि सहनाइन से मन माहैं।।२।९।। 'S [ हीरक छ द] सुदरि सब सु दर प्रति मदिर पर यों बनी। मोहन गिरि शृगन पर मानहुँ महि मोहनी ॥ भूषनगन भूषित तन भूरि चितन चोरहीं। देखति जनु रेखति तनु बान नयन कारहीं ॥२३०॥ र [सुदरी छ द] शकर शैल चढ़ी मन मोहति । सिद्धन की तनया जनु सोहति ॥ 0 • पद्मन ऊपर पद्मिनि मानहुँ । " रूपन ऊपर दीपति जानहुँ ॥२३१॥ (१) श्रावझ = ताशा।