पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१००

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( ५० ) [विशेषक छ द] एक लिये कर दर्पण चदन चित्र करे। मोहति है मन मानहुँ चाँदनि चद धरे ॥ नैन विशालनि अबर लालनि ज्योति जगी । मानहुँ रागिनि राजति है अनुराग रँगी ॥२३२।। नील निचोलन को पहिरे यक चित्त हरे। मेघन की धु ति मानहुँ दामिनि देह धरे॥ एकन के तन सूच्छम सारि जराय जरी। सूर-करावलि सी जनु पद्मिनि देह धरी ॥२३३॥ 2 [ोटक छ द] / १६ बरखै कुसुमावलि एक घनी । शुभ शोभन कामलता सी बनी ॥ . बरखै फल फूलन लायक की। साल जनु हैं तरुनी रतिनायक की ॥२३४॥ [दो०] भीर भये गज पर चढे, श्रीरघुनाथ विचारि । तिनहिं देखि बरनत सबै, नगर नागरी नारि ॥२३५॥ [तोटक छ द] तमपुज लिया गहि भानु मनौ । गिरि-अ जन. ऊपर सेोम भनौ । Cuin Cr CH (१) लायक = लाजक, लावा; धान की खील ।