पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१०१

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रामस्वयंबर। ही हाथन ते विरचे विधाता हैं । भने रघुराज मुनिराज मोहि जानो परे, सुमग सहोदर कुमार दोऊ भ्राता हैं ॥४७५॥ (दोहा) सुनि विदेह के बर वचन, वाले मुनि मुसकाय । .. जौन कही तुम सत्य सच, मृषा न नेक जनाय ॥४७६॥ (कवित्त) विश्व-वर-विदित वसुंधराधिराज धीर, वीरमनि अवध अधीस नरपाल हैं । विवुध सहाई शक जाको रुख राखे चलै, बंदत चरन घराधीसन के माल हैं ॥ धरमधुरंधर धा में धाक धावै ध्रुव, ध्रुव सों समुद्धत प्रताप सर्वकाल हैं । भने रघुराज राज राजमनि महाराज,दाहिने दुनी के दनरत्यजू के लाल हैं॥३७॥ (दोहा) जेहि कारन आये इतै, दसरथ राजकुमार । सुनो कथा सिगरी खरी, मिथिला-भूमरतार ||39E| (सवैया) लंक वसै रजनीचरनाह महाभट गवन राबरो जाना। ताके पठाये मरीच सुबाहु उपदय यज्ञ में कीन्ह्यो महानो। होतपभंग भै साप दियोनहिं कौसलनाथपै कीन्हो पयाने। माग्यो नपै सुत द्वै रघुराज दियो दसरथ दयाल हैदानी ॥४७॥ ये जुग नंदन कौसलनाथ के लै संग आश्रम बाट सिधारे । मारग में मिली ताड़का आय भयावनि धाति दंत निकारे। खेल सों खेलत ही रघुनंदन बानन वृंदन ताहि सहारे । . .