पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१००

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रामस्वयंवर । (दोहा) गये हुते संध्या करन, पुरुपसिंह दोउ भाय । आये सहज समाज मधि, जिमि उडगन दिनराय ७०॥ सहित समाज विदेह तह, राम लपन को देखि। ' पलकन ने कीन्हें विदा, निमि नृप को दुख लेखि ॥४७॥ सुरति सम्हारि नरेस तय, कौशिक को कर जोरि । पूछे गद्गद गर गिरा, प्रेम पयोनिधि वोरि ४७२॥ (सवैया) सुंदर श्यामल गौर सरीर बिलोकत धीर रहे फल काके । लोचन विश्व के चित्त के चार किसोर कुमार छपे सुखमा के॥ आपने आनन इंदु छटान ते हारक भे सबके मनसा के । श्रीरघुराज कहीमुनिराज अनोखे ललान के नाम पिता के। (कवित्त) काके उदै पूरब को पुण्य परिपूरन है, कौन पै विधाता आजु दाहिना दयाल है । काके अंगना में आजु खेलतो हैं सिद्धि निधि, कौन लूटि ब्रह्मानंद हैगयो निहाल है ॥ आजुलौं न देखे ऐसे कुंवर कलानिधि से, विरति चलित मन हैगयो विहाल है । भनै रघुराज मुनिराज क्यों घताओ नहि. सांवरो सलोना कहा काको यह लाल है ॥४७॥ कहाँ पाये कौन के पठाये संग आये नाथ,कैसेकै छोड़ाये भनि भले पितु माता हैं । कोमल कमल ह ते चरन बगायो बन, कंफर कठिन काहे आप ' अवदाता है ॥ मातप तहत सुमारे ये कुमार काहे, आपने