पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंवर। [सवैया] . नाथ कछू यिनती सुनिये रघुराज चौ लघु बंधु हमारो।। पाय रजाय तिहारि प्रसन्न सों देखहुं मैं मिथिलापुर. सारो॥ मोहिं लजाय डरै तुम को प्रभु ताते कछु नहिं बैन उचारो।.. जाऊं लेवाय लै आऊं देखाय पुरी यदि सासन होय तिहारो॥४२॥ युकि के बोरे पछोरे पियूष के वैन निहोरे को रघुराई। सो सुनि गाधिकुमार बिचारि कह्यो सुख अंबुधि चित्त डुवाई | जाहु लला लषनै सँग लै पुर देखहु पै न कियो लरि काई। राखो नहीं तुम जो मरजाद कहौ मुंनि दीन बसैं । कह जाई ॥४६॥ नगर-दर्शन (दोहा) सुनि मुनि बचन मुदित मन, पुरुषसिंह रघुवीर। धर्मधुरंधर यदि गुरु, चले रुचिर रनधीर ॥४६॥ घुघुवारी अलक लटकि, हलक छलक कपोल । मनु अरविंद मरंदहित, अलि अवली अति लोल ॥४९५५ . कटि निषंग धनु बाम कर, दाहिन फेरत बान ।, . मोल लेन जनु जात हैं, जनकनगर जन जान ॥४६॥ इक एकन ते कहत महं, फैली खपर अपार । आवत देखन नगर दोउ, सुंदर राजकुमार ॥४६॥