पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१०६

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रामस्वयंवर। (सवैया) पुनि कोई तहां लखि राजकिसोरन बोलि उठी मधुरी चतिया । सवि येही सुबाहु मरीच हते नहिं लागत सत्य किहू भतिया ॥ रघुराज महा सुकुमार कुमार हमार हरै हिय की गतिया। निसिचारिज संग लड़ावत में कस कौशिक को न फटी छतिया ॥ ५०३ ।। कोई कहो रघुराज सुनो दुख होत अरी छनहीं छनहीं मन ।भूप विदेह प्रतिज्ञा करी तुम जानती हौ सिगरी सजनी जन । सो तजि किमि चित्त कठोर चितै चितचोर किसोरन के तन । जो न किया परनै पन पेलि पषान पर पुहुमीपति के पन॥१०४॥ोऊ कह कर जोरि कै ऊरध संभु स्वयंभु विनय सुनि लीजै । है भुजचारि मुरारि रमा पुरबासिन के अब प्रेम पतीजै ॥ सारदा गौरि मनोरथ पूरहु दीनता देखि यही बर दीजै। श्रीरघुराज सु श्याम मार को जानकी-व्याह विसेपि करीजै ।।५०५॥ (दोहा) पुरवासिन नारिन कहन, ऐसे बहु विधि वैन । राजकुवर निरखत नगर, मंद मंद भरि चैन ॥५०६॥ (छंद हरिगीतिका) आगे वतावत पंथ बालक लाल यहि मग आइये। यहि ओर कौतुक विविध विधि निज अनुज को दरसाइये। चितवत चहूंकित चाह नगर प्रयान अमित सोहात हैं। मनु छथि पुरी महं भार अरु भृगार बपु दरसात हैं॥५०७n