पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१०७

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रामस्वयंबर। कंचन कलस विलसत विमल मानहु गगन तागवली। फहरत पताके तुग चमकत चार जनु तड़ितावली ॥ फावित फटिक की फरस फाटक हाटकी हिय हारने। फैलत फुहारन सलिल सुरभित द्वार द्वार हजारने ॥५०८४ मनु काम कर निरमान विविध दुकान धनद धनीन की ! पन्ना पदिक तिमि पदुमरागन रासि लाग मनीन की। कंचन कपाटन हे ठाटन चार बाटन द्वार है। सरसीन घाटन हेरिहाटन मुदित राजकुमार हैं ॥५०॥ कहुं चलत चारु तुरंग मत्त मतंग एकहि संग है। कहुं नगर अंगन नृपन की चतुरंग उदित उमंग हैं। ऊंची अटा सारद घटा सो कलित कंचन तोरने । गोले गवाछहु छजत छत्जा देव गृह मद मोरने ॥५१०॥ जहं लखहु तह चौहट्ट मंदिर टट्ट विसद बजार हैं। राजत कनक सब वस्तु पूरित विविध.अन्नागार हैं। जेहि बाट गमनत राजसुत तह तह लगत जन ठार हैं। हर हाट में घर बाट में घर घाट में नहि बाट हैं ॥५१॥ .:. . यज्ञशाला-वणेन (छंद गीतिका) कोउ कहत बालक इतै भावहु जुगल गजकुमार। तुमको देखावहिं जहं स्वयंवर होनहार अवार ॥ प्रभु चले चालक संग पीछे भरे लपन उमंग।