पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१२४

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। सुनि मिथिलेस निदेस मुनीसा एवमस्तु कहि दियो असीसा उठि तहते सचिवन वुलवायो । जनकराज कर हुकुम सुनायो। सचिव सपदि सब किया विधाना। सतानंद सासन परमाना॥ सकल नृपन सासन पठवाये। रंगभूमि सुंदर, सजवाये। देस देस के सफल महीपा । सजे समाज सहित कुलदीपा। (छंद भुजंगप्रयात) चढ़े मत्त मातंग पैभूप केते । मनोआजुही स्वर्ग को जीति लेते॥ . महा सानधारेवड़ी सैनवारे। चले आवते झूमते बोजवारे ॥ कोऊपंथ भूमै तुरंग नचाई। सुनारीन के वृंद सोमा दिखावै ॥ कोऊपाल को पै.महीपै सवारे। धनेसै लजावै सुझंगै सुधारे ॥ प्रतीहार वोलैं छरी पानि धारे। छजे छत्र चौर चलैं और चारे ॥ 'भई भीरभारी पुरी चारि ओरावज वेस वाजेमच्या मंजुसोरा॥ (चौपाई) मंत्री सचिव मुसाहिव धाये । लगे सबन बैठावन चाये। रहीं मंत्र अवली जो आगे । बैठाये . राजन बड़भागे॥ तिन पाछे मंचावलि माहीं । वैठाये सब सजन काही । तृतिय मंच अवलो जो भाई । पौर जानपद दिय बैठाई ।। रंगभूमि यहि बिधि जब भरिंगी राम दरस लालस हिय अरिगै। यहि विधिरामसमाज विराजी सचिवप्रधान सुमतिकृतकाजी देखि स्वयंवर सब संभारा । जाय जनक सों बचन उचारा॥ नाथ समा महं धारिय पाऊ । आये सफल भूप भरि चाऊ । सुनि विदेह पन पट धारे । रंगभूमि कह सपदि सिधारे ।