पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१२५

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रामस्वयंवर। सासन भेज दिया रनिवासा । वैठि झरोखन लखें तमासा॥ मंत्रिन जुत मिथिला महराजा। गयो रंगमाह सहित समाजा॥ सतानंद उत चलि मतिधामा। विश्वामित्रहि किया प्रनामा ॥ सतानंद तब बचन सुनायो । तुमहिं विदेह नरेस बुलायो । कोसलनाथ-कुमार समेता। रंगभूमि कह चलहु सचेता। सतानंद की सुनिअसि बानी । कौसिक मंजुल गिरा बखानी॥ श्राप चलहु हम आवत पाछे। लै दोउ राजकुमारन आछे। राम लषन सों कह मुसक्याई । बैठहु इतै अवै दोउ भाई ॥ जब लगि नहि मिथिलेसकुमारा।तुमहिं बुलावन कहं पगु धारा उचित न तब लगि जाय तुम्हारा। तुम समान नहिं राजकुमारा।। प्रथम जात हम जहाँ विदेह । जब बुलवैहे तब बलि देह। अस कहि मुनिसमाज तहं राखी। चल्यो विदेह दरस अभिलाषी॥ पहुँच्यो रंगभूमि के द्वारा । प्रतीहार तय जाय पुकारा॥ महाराज कौशिक मुनि आये । राजकुमारन नहिं ले आये। कियो जाय नूप दंडप्रनामा ।दिय मुनीस आसिषतपधामा। (दोहा) कौशिक को वैठाय तिहि किया विविध सत्कार । पूछ्यो कारन कौन नहिं आये गजकुमार ॥६३५॥ , (चौपाई ) मुनि मुसक्याय कही तय पानी । अहे। विदेह बड़े विज्ञानी। सतानंद मुनि गये बुलावन । आये तुव हमसदन सुहावन । बैतो अवध-अधीस-दुलारे । आवहिं किमि यिन गये कुमारे॥