पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१३३

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रामस्वयंबर। (छंद नाराच) फरौ निदेस नाथ नेकु नैन ते निहारिकै । उठाय भूमि फेकिहीं पताल ते उखारिकै । पुरान या पुरारिको पिनाक ना कठोर है। उठाय लै चढ़ाय धाय जाउं छानि छोर है। कितेक बात चापुरी पिनाक रामदास को। उठाइयो चढाइयोन नेकु काम त्रास को॥ अवै न धीर ते वसुंधरा विहीन है गई । कही वृथा विदेह बात सोचि ना भले लई ॥ जवै प्रवीर लछमनै सकोप भो समाज में । सकान भोति मानि भूप बूड़ि सिंधु लाज में। प्रकोपवंत देखिकै अनंत को तुरंत ही । भगे विमान गौरवान लै विवारि अंतही विचारि विश्व को विहाल दीन को दयाल जो। कराल कोप को न काल हाल विश्वकाल जो ॥ चलाय नैन सैन बंधु को निवारि लेत भो । निवारि देवतानि को मिटाय भीति देत भो ॥ ६८१ ॥ (दोहा) प्रभु-नयनन की सैन लखि लपन बंदि पदकंज। ,भये मौन छथि भौन तहं करि महीप मद गंज ॥ ६८२ ॥ . (चौपाई) विश्वामित्र महामुनि शानी । बोलत भे अवसर जिय जानी ॥ सुनहु विदेह भूप मतिमाना । जो अब तुम कछुवचन वखाना !! सोअनुचित रघुकुलमनि आगे। इनको बयन मान सम लागे । लषन कही सोऊ लरिकाई । बदन बदत कहुं बीर बड़ाई।