पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१३४

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रामस्वयंवर। जो अनुसासन होइ तुम्हारे । धनु समीप अबराम सिधारें कोसलपाल कुवर सुकुमारे। सबके पाछे चहत सिधारे ।। (दोहा) सुनिकै विश्वामित्र के वचन विदेह विचारि। • बोल्यो पदवंदन करत नयन वहावत वारि ॥ ६८४ ॥ (चौपाई) का कहिये मुनि नहिं कहि जाई । कोमल कुँवर धनुष कठिनाईn: . प्रन परिहरे न होत प्रबोधा । हारि रहे जगती के जोधा ॥ जो मम भोग्य विवस रघुराजू । तोरहिं संभु सरासन आजू ॥ तौ पुनि इनहि छोडिमम वाला । काके गल मेली जयमाला ॥ अस कहि मुनिसों पुनि मिथिलेसू। दीन्ह्यौ बंदिन विदित निदेसू॥ द्वीप द्वीप के सकल महोपा । अव नहिं गवनहिं धनुष समीपा॥ (सवैया) भूपति वैन बिचारि मुनीस मनैमन श्रीजगदीस सम्हारी। मंजुल मंदहि मंदहि वैन को रघुनंदहि नैन निहारी ।। श्रीरघुराज सुराज समाज में लाज भई सबसे हिय हारी । . लाल उठौ यहि काल तुम्ही मिथिलेस कलेस को देहुनिावरी॥ . . . (सोरठा) . १, सुनि कौसिक के वैन-प्रेम लपेटे निपट सुख । . . उठे सहज छुविःएन गुरु-पद-पद्म प्रनाम करि ॥ ६८ ॥