सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

-१३१ N रामस्वयंघर। ले विदेह को चित्र पर कर दसरथ .सीस लगाये। मानहुँ मिले विदेह आयत अत आनंद उर छाये ॥७३॥ दूत गहे पुनि पद वशिष्ठ के बोले वचन सुखारे । कियो दंड सम प्रणत आपको स्वामी जनक हमारे॥ दियो असीस मुनीस मोद भरि पूछो जनक भलाई । दूत को मुनि कृपा रावरी सब विधि ते कुसलाई ॥७॥ (दोहा) अजनंदन पूछयो बहुरि ये हो दूत सुजान । तुम जानौ कछु खबरि मुनि कौसिक किहि सुस्थान ॥ सुनत दूत भूपति वचन कहे वचन मुसक्याय । खत यांचे मिथिलेस का सिगरी परी जनाय ।। ७१६ ॥ । (चौपाई) दूत बचन सुनि अवध भुआला लग्यो पत्र बाँचन तिहि काला सकल पत्रिका जव नृप यांची । जानीराम लपन सुधि साँची। विधिलुत पानि पत्रिका दीन्हीं।जोरिकंज कर विनती कोन्हीं। यह-सव नाथ तुम्हारी दाया । रंगभूमि रघुपति जसं पाया। लै खत पुलकि मुनीसहु चाँचे । लहि सुखसिंधु रामरतिरांचे॥ प्रेममग्न कछु बोलि न आया । जस तसकै बोले मुनिराया ॥ कालिह सुदिन सुंदर सुभजोगा। सजन वरातहि देहु नियोगा। दसरथ कहो न मैं कछु जानौं । आप रजाय सिद्ध सब मानौं । खेलत रह सरजू के तोरा । जुगल बंधु लै बालक भीरा॥ एक सखा तब खबरि जनायो । चार पत्र पुरते ले आयो ।