१३० . रामस्वयपर। यहि विधि करत वशिष्ठ भूप के सभा सुखित मंधादा।
- आये चारि चार मिथिला ते राजद्वार मर्यादा ।।
दसरथ द्वारपाल देखे तिन छरी विदेह निसानी। . सादर कुसल पूछि मिथिला की बैठाए सनमानी ||७६७ तुरत जाय अवधेस समा मह ऐसे पचन सुनाए । । धावन चारि पत्र ले आये श्रीमिथिलेस पठाये ।। सुनि मिथिलेस पत्र की भावनि लहि नृप मोदमहाई। कहो द्वारपालहिं विदेह के ल्यावहु दूत लिवाई ॥७६८॥ द्वारपाल धाए तुरंत तह कहे जाय तिन पाहीं। भूए-सिरोमनि तुमहि बुलायो चलिय सभा सुख माहीं। समा-द्वार पहुँचे जव धावन दसरथ-सभा निहारे । सिंहासनासीन कोसलपति सुनासीर मद गारे ३७६ER कनक मुद्र कछु रत्त लिये कर जया राज मर्यादा। चारों चतुर चार चलि सन्मुख भरे भूरि प्रहलादा। पुलकित तनु करिकै प्रणाम सव दंड सरिसमाह माहीं। दीन्हे नजरि निछावरि कीन्हें कोसलनायक काहीं 1990 जारि पानि पंकज पुनि वाले अतिसय मंजुल वानी। महाराज-मिथिलाधिराज इत पठए हमाहि विग्यानी ॥ कह्यो कुसल पूछन को बहु विधि अपनी कुसल सुनावना दीन्यो बहुरि विचित्र पत्र यह रघुकुल-माद बढ़ावनः।।७७॥ अस कहि चतुर चार लैखत करधरयो चरन के आगे। ठाढ़े रहे मौन चारौ चर अवलोकन अनुरगे ॥